इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अरबी फारसी विभाग में मंगलवार को आयोजित एक दिवसीय सेमिनार में शोध की प्रासंगिकता एवं उनमें नवीनतम पहलुओं पर चर्चा की गई।
मुख्य वक्ता जामिया मिलिया इस्लामिया नई दिल्ली के अरबी विभागाध्यक्ष प्रो0 हबीबउल्ला खान ने कहा रिसर्च परिकल्पनाओं से परे वास्तविकता की खोज का नाम है। नीवनतम शोध में पुराने संदर्भ सदैव और विधियां सदैव प्रासंगिक रहीं हैं। दरअसल रिसर्च तो उसे कहते हैं जो संबद्ध विश्वविद्यालय को दुनिया के परिदृष्य पर ले जाए। ये रिसर्च ही है जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय को दोबारा से आक्फोर्ड आफ द ईस्ट बना सकती है। प्रो. हबीबउल्ला ने कहा छात्रों में पुस्तक एवं अध्ययन सामग्री को पढने का जस्बा जब तक नहीं पैदा होता वह सफल शोधार्थी नहीं हो सकते।
मुख्य अतिथि अरबी भाषा के विश्व के शीर्ष अनुवादक और तुलनात्मक अध्ययन के वि़द्धान डा. अहमद मकीन ने कहा शोधार्थी की विकास यात्रा पूरे विश्व में संबंधित अध्ययन पर निर्भर करती है। इलाहाबाद विश्विद्यालय के अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. संजय सक्सेना ने कहा कि इंटरनेट के जमाने में मूलग्रंथों का महत्व कम नहीं हुआ है।
भले ही दुनियाभर की वेबसाइट आपको आधार सामग्री उपलब्ध करा रहीं हो परन्तु अन्वेषण ऽ जाँच ऽ अनुसंधान ऽ गवेषण ऽ खोज ऽ संधान ऽ गवेषणा ऽ छानबीनय तहकीक़ातय तलाशय अन्वीक्षण आदि “ाब्दों की व्याख्या आज भी असल किताब हमारे पुस्तकालयों में ही मिलती है। विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सालेहा रशीद ने कहा कि शोध में जमाने की रफ्तार और वैश्विक परिदृश्य जब तक न हो वह मुकम्मल नहीं होता।
प्रयागराज से अनिल कुमार उत्तर प्रदेश प्रभारी